“अमेरिकी सीनेट में रिपब्लिकन्स ने इलेक्ट्रिक वाहनों पर 7,500 डॉलर के टैक्स क्रेडिट को सितंबर 2025 तक खत्म करने का प्रस्ताव रखा है। यह कदम बाइडेन प्रशासन की क्लीन एनर्जी नीतियों को पलट सकता है, जिससे EV की कीमतें बढ़ सकती हैं। भारत में EV निर्माताओं और उपभोक्ताओं पर भी इसका असर हो सकता है।”
रिपब्लिकन्स का EV टैक्स क्रेडिट पर हमला: भारत पर क्या होगा असर?
अमेरिकी सीनेट में रिपब्लिकन्स ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के टैक्स और बजट बिल में संशोधन कर इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) पर 7,500 डॉलर के टैक्स क्रेडिट को 30 सितंबर 2025 तक समाप्त करने का प्रस्ताव दिया है। यह बिल, जिसे ‘ट्रम्प्स बिग ब्यूटीफुल बिल’ कहा जा रहा है, पिछले महीने हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स में पास हो चुका है। सीनेट का यह कदम बाइडेन प्रशासन की इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट (IRA) के तहत शुरू की गई क्लीन एनर्जी नीतियों को उलटने की दिशा में है, जिसने EV को किफायती बनाने में अहम भूमिका निभाई थी।
इस बिल में सौर, पवन और ऊर्जा भंडारण परियोजनाओं के लिए प्रोत्साहन को भी तेजी से खत्म करने और चीन से सामग्री का उपयोग करने वाली परियोजनाओं पर अतिरिक्त कर लगाने का प्रावधान है। रिपब्लिकन्स का तर्क है कि ये टैक्स क्रेडिट धनी लोगों और विदेशी संस्थाओं को फायदा पहुंचाते हैं। सीनेटर जॉन बैरासो ने अपने ‘एलिमिनेटिंग लैविश इंसेंटिव्स टू इलेक्ट्रिक (ELITE) व्हीकल्स एक्ट’ में इस ‘लीजिंग लूपहोल’ को बंद करने की मांग की है, जिसके जरिए कुछ करदाता और विदेशी संस्थाएं EV प्रोत्साहनों का लाभ उठा रही थीं।
हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स का संस्करण 2025 के अंत तक टैक्स क्रेडिट को जारी रखने और 200,000 EV बिक्री से कम वाले निर्माताओं के लिए 2026 तक इसे बनाए रखने की अनुमति देता है। हालांकि, सीनेट का प्रस्ताव अधिक सख्त है, जो सभी EV क्रेडिट्स को सितंबर 2025 तक समाप्त कर देगा। इसके अलावा, कॉर्पोरेट एवरेज फ्यूल इकोनॉमी (CAFE) नियमों के उल्लंघन पर जुर्माने को खत्म करने का प्रावधान भी है, जिससे गैस से चलने वाले वाहनों का उत्पादन आसान हो सकता है।
इस कदम का अमेरिकी ऑटोमोटिव उद्योग पर गहरा असर पड़ सकता है। जनरल मोटर्स, फोर्ड और टेस्ला जैसे निर्माता, जो EV उत्पादन में भारी निवेश कर चुके हैं, प्रभावित होंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम EV की कीमतों को बढ़ा सकता है, जिससे उपभोक्ता मांग कम हो सकती है। प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन के अनुसार, अगर ये प्रोत्साहन खत्म होते हैं, तो 2030 तक अमेरिका में EV की बिक्री केवल 24% होगी।
भारत के संदर्भ में, यह नीति वैश्विक EV बाजार को प्रभावित कर सकती है। भारतीय कंपनियां जैसे टाटा मोटर्स और महिंद्रा, जो EV सेक्टर में निवेश कर रही हैं, को अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा के लिए नई रणनीति बनानी पड़ सकती है। इसके अलावा, बैटरी उत्पादन और लिथियम जैसे कच्चे माल की आपूर्ति श्रृंखला पर भी असर पड़ सकता है, क्योंकि अमेरिकी बिल में चीनी तकनीक का उपयोग करने वाली परियोजनाओं पर सख्ती प्रस्तावित है।
उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम अमेरिका को चीन और यूरोप से और पीछे कर सकता है, जहां EV बिक्री तेजी से बढ़ रही है। पर्यावरण की दृष्टि से, परिवहन क्षेत्र, जो अमेरिका में 28% ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का कारण है, को इस नीति से नुकसान हो सकता है।
Disclaimer: यह लेख विभिन्न समाचार स्रोतों और विशेषज्ञ विश्लेषणों पर आधारित है। जानकारी को यथासंभव सटीक रखने का प्रयास किया गया है, लेकिन पाठकों को सलाह दी जाती है कि वे नवीनतम अपडेट्स के लिए आधिकारिक स्रोतों की जांच करें।