उत्तर प्रदेश सरकार ने ग्राम-ऊर्जा मॉडल शुरू किया है, जिसके तहत ग्रामीण क्षेत्रों में 2.5 लाख बायोगैस यूनिट्स स्थापित होंगी। यह पहल रसोई गैस की खपत 70% तक कम करेगी और जैविक खाद से अतिरिक्त आय देगी। पायलट प्रोजेक्ट अयोध्या, वाराणसी, गोरखपुर और गोंडा में शुरू होगा।
यूपी में बायोगैस क्रांति: ग्राम-ऊर्जा मॉडल से ग्रामीण आत्मनिर्भरता
उत्तर प्रदेश सरकार ने ग्रामीण क्षेत्रों में ऊर्जा आत्मनिर्भरता और रोजगार सृजन के लिए ‘ग्राम-ऊर्जा मॉडल’ लॉन्च किया है। इस महत्वाकांक्षी योजना के तहत 2.5 लाख बायोगैस यूनिट्स स्थापित करने का लक्ष्य है, जिसकी शुरुआत अयोध्या, वाराणसी, गोरखपुर और गोंडा जिलों में 2,250 यूनिट्स के पायलट प्रोजेक्ट से होगी। प्रत्येक यूनिट की लागत ₹39,300 है, जिसमें किसानों को केवल ₹3,990 का योगदान देना होगा, शेष राशि सरकारी सब्सिडी और कार्बन क्रेडिट मॉडल से पूरी होगी।
यह योजना महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी (MGNREGA) के साथ एकीकृत है। ग्रामीण परिवारों को व्यक्तिगत गोशालाएँ बनाने में मदद मिलेगी, जिनके गोबर से बायोगैस यूनिट्स रसोई ईंधन और जैविक खाद का उत्पादन करेंगी। इससे रसोई में LPG की खपत 70% तक कम होगी, जिससे ग्रामीण परिवारों का खर्च बचेगा और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा।
किसान बची हुई जैविक खाद को पास के खेतों में बेचकर अतिरिक्त आय अर्जित कर सकते हैं। योजना के तहत 43 चयनित गोशालाओं में बायोगैस और जैविक खाद संयंत्र स्थापित किए जाएंगे, जो प्रति माह 50 क्विंटल खाद का उत्पादन करेंगे। यह जैविक खेती करने वाले किसानों के लिए मूल्यवान संसाधन होगा।
प्रयागराज में यूपी का पहला बायो-CNG संयंत्र शुरू हो चुका है, और बरसाना में भारत का सबसे बड़ा संपीडित बायोगैस (CBG) संयंत्र इस साल शुरू होगा। भविष्य में बायोगैस को वाहन ईंधन के रूप में उपयोग करने की संभावना भी तलाशी जा रही है। यह पहल न केवल ग्रामीण ऊर्जा संकट को हल करेगी, बल्कि स्थानीय रोजगार और जैविक खेती को भी बढ़ावा देगी।
Disclaimer: यह लेख हाल की खबरों और विश्वसनीय स्रोतों पर आधारित है। जानकारी को सत्यापित करने के लिए आधिकारिक सरकारी वेबसाइट्स और समाचार पत्रों का उपयोग किया गया है। यह लेख केवल सूचना के उद्देश्य से है और निवेश या नीतिगत निर्णयों के लिए पेशेवर सलाह का विकल्प नहीं है।